काशीखंड की कथा के अनुसार उज्जयनी से आकर काशी में
बसने वाले वशिष्ठ नामक ब्राह्मण कुमार ने काशी के आचार्य से दीक्षा ले पाशुपत व्रत
धारण किया | यहाँ रहते हुए वह नित्य हरपाप तीर्थ (मानस तीर्थ)
में स्नान करता और त्रिकाल शिवपूजा करता था| गुरु
और शिव में उसके लिए कोई भेद नहीं था | १२ वर्ष की अवस्था में वह गुरु के साथ
केदारेश्वर तीर्थ की यात्रा के निमित्त हिमालय पर्वत पर गया | बीच में ही उसके गुरु की मृत्यु हो गयी | शिव के पार्षद उसे हिमालय ले गए| केदारेश्वर महादेव के दर्शन के बाद वह
काशीपुरी वापिस आ गए | उसने नियम लिया कि प्रत्येक चैत्र पूर्णिमा को वह केदारनाथ का
दर्शन अवश्य करेगा | इस तरह उसने ६१ यात्राएँ पूरी कीं | अब वह वृद्ध और अशक्त हो गया था | फिर भी उसने निर्णय लिया कि यदि वह
रास्ते में मृत भी हो गया तो वह भी गुरु की तरह उत्तम गति का अधिकारी होगा | यह सोचकर उसने यात्रा प्रारंभ कर दी| उसकी दृढ भक्ति देखकर भगवान आशुतोष
केदारेश्वर शिव ने उसे स्वप्न में दर्शन दिया और वरदान दिया कि मैं तुम्हें यही काशी
में ही दर्शन दिया करूँगा | आशुतोष शिव ने उससे वर मांगने को बोला | तो ब्राह्मण ने दो वर मांगे | पहला कि यहाँ मेरे साथ जितने लोग भी
हैं सब आपकी कृपा के अधिकारी हों | महाकाल शिव के कहने पर उसने दूसरे वर में यह प्रार्थना की - आप
हिमालय से यहीं आकर निवास करें | तभी से शिव ने यहीं वाराणसी में हरपाप तीर्थ (मानस तीर्थ)
केदारघाट पर केदारेश्वर के रूप में अपना निवास बनाया |
||हर हर महादेव||

